Annapurna Puja 2023 :अन्नपूर्णा माता, हिन्दू धर्म की देवी है जो आहार और पोषण की देवी के रूप में पूजी जाती है। उन्हें ‘अन्नदात्री’ और ‘अन्नलक्ष्मी’ भी कहा जाता है, जो भक्तों को आहार से समृद्धि और संतुलन का आनंद देती हैं। अन्नपूर्णा माता का मंदिर भारत भर में विभिन्न स्थानों पर स्थित है, जहां उन्हें विशेष भक्ति और आराधना के साथ पूजा जाता है। उनका वाहन मूषक है और उनका पूजन विशेष रूप से नवरात्रि के दौरान किया जाता है, जब भक्त उनसे आहार की कृपा के लिए प्रार्थना करते हैं। अन्नपूर्णा माता की आराधना से जीवन में समृद्धि, संतुलन, और शांति मिलती है।
annapurna puja 2023 date and time
यह दिन मां अन्नपूर्णा को समर्पित है, जो भोजन और पोषण की देवी हैं जो अपने भक्तों को अच्छे स्वास्थ्य और पोषण से आशीर्वादित करती हैं। हालांकि, अन्नपूर्णा पूजा की तिथियों की बात करते हैं, 2023 में अन्नपूर्णा पूजा को 29 मार्च को मनाया गया था, जबकि आगामी वर्ष 2024 में, यह पूजा 16 अप्रैल को देखी जाएगी।
annapurna mata ki puja kaise kare
माता अन्नपूर्णा के जन्मोत्सव पर, घर को उत्कृष्टता से सजाकर और शुद्ध करके उपहारित करना अद्वितीय और प्रभावशाली अनुभव हो सकता है। इस शुभ दिन पर, गंगा जल से अपने आवास को सुगंधित करते हुए घर को पवित्र बनाना चाहिए। इसके पश्चात, भोजन बनाने वाले चूल्हे को हल्दी, कुमकुम, चावल, पुष्प, धूप और दीपक से सजाकर पूजन करना अत्यधिक प्रेरणादायक होगा। उसके बाद, रसोई में ही माता पार्वती और भगवान शंकरजी की विशेष पूजा करना एक अद्भुत आध्यात्मिक अनुभव हो सकता है।
अन्नपूर्णा व्रत विधि एवं कथा – Annapurna mata vidhi and katha
अन्नपूर्णा व्रत विधि एवं कथा: माता अन्नपूर्णा का यह व्रत अत्युन्नत, अद्वितीय, और अद्भुत है, जो मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष पंचमी से प्रारंभ होता है और मार्गशीर्ष शुक्ल षष्ठी को समाप्त होता है। इस महाव्रत का आयोजन सत्रह दिनों तक होता है, जिससे अनगिनत आयु, अपार धन, और श्रेष्ठ संतान की प्राप्ति होती है।
अन्नपूर्णा व्रत के प्रभाव से पुरुष को पुत्र, पौत्र, और समृद्धि का वियोग कभी नहीं होता। इस अद्वितीय व्रत का अनुसरण करने से उनकी श्रीलक्ष्मी सदैव अचूक रूप से संरक्षित रहती है, और उनके घर में कभी भी अन्न की कमी नहीं होती। जो इस अद्भुत व्रत की आराधना में रत होते हैं, उनका घर सदैव माता अन्नपूर्णा की कृपा से आत्मसमृद्धि और पूर्णता के साथ शोभित रहता है।
अन्नपूर्णा माता पूजन सामग्री
माता अन्नपूर्णा की मूर्ति को रेशमी डोरा से सजाया गया है। उसमें चंदन, रोली, धूप, दूर्वा, और अक्षत हैं। सत्रहवें दिन के लिए धान के पौधे, सत्रह प्रकार के पकवान, और सत्रह पात्र भी हैं। दीप और घी से चमकता है, और माता को लाल वस्त्र और जल पात्र के साथ नैवेद्य चढ़ाया जाता है। इसके साथ ही, लाल पुष्प और पुष्पमाला भी हैं।
अन्नपूर्णा माता पूजन विधि
इस प्रकार, सोलह दिनों तक माता अन्नपूर्णा की कथा का श्रवण करना और उसके पश्चात् व्रत करना, यह साधना अत्यधिक उद्भावना और अद्वितीयता के साथ किया जाना चाहिए। जब सत्रहवां दिन आता है, जो कि मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की षष्ठी होती है, तो व्रती को श्वेत वस्त्र धारण करना चाहिए और स्त्री को लाल वस्त्र पहनना चाहिए। रात्रि में पूजा स्थल पर जाकर, धान के पौधों से एक कल्पवृक्ष बनाकर उसे स्थापित करना और उसके नीचे भगवती अन्नपूर्णा की दिव्य मूर्ति स्थापित करना चाहिए।
उस मूर्ति का रंग जवापुष्प की भाँति हो, उनके मुखमण्डल में तीन नेत्र हों, मस्तकपर अर्धचंद्र शोभित हो, जिससे नवयौवन के दर्शन होते हैं। बन्धूक के फूलों की ढ़ेरी उसके चारों ओर लगी हो और वह दिव्य आभूषणों से विभूषित हो, उनकी मूर्ति प्रसन्न मुद्रा में स्वर्ण के आसन पर विराजित हो। मूर्ति के बाएं हाथ में अन्न से परिपूर्ण माणिक का पात्र और दाएं हाथ में रत्नों से निर्मित कलछुल हो।
सोलह पंखुड़ियों वाले कमल की एक पंखुड़ी पर पूर्व से दक्षिण की ओर १. नन्दिनी, २. मेदिनी, ३. भद्रा, ४. गंगा, ५. बहुरूपा, ६. तितिक्षा, ७. माया, ८. हति, ९. स्वसा, १०. रिपुहन्त्री, ११. अन्नदा, १२. नन्दा, १३. पूर्णा, १४. रुचिरनेत्रा, १५. स्वामीसिद्धा, १६. हासिनी, इनको अंकित करना चाहिए। हे देवी! मैंने जो यह पूजा की है, उसे आप ग्रहण करें और हमें अपनी कृपा में रत्नाकर बनाएं। आपको नमस्कार हैं।
हे जननी! तुम तीनों लोकों का पोषण करनेवाली देवी हो, मैं तुम्हारा अनुसरण करने वाला भक्त हूँ। इस कारण, हे माता! तुमसे मैं श्रेष्ठ वरदान प्राप्त करना चाहता हूँ, अपनी रक्षा के लिए आपकी कृपा की प्रतीक्षा करता हूँ। फिर, अन्नपूर्णा व्रत की कथा सुनते हुए, गुरुको दक्षिणा प्रदान करते हुए, सत्रह पात्रों में प्रशाद से देवी को समर्पित करते हुए, ब्राह्मणों को दान देकर, सुहागन औरतों को भोजन कराकर, रात्रि में बिना नमक के आत्म-निग्रह करते हुए, और भगवती के महोत्सव में प्रतिष्ठा का अद्भुत आयोजन करते हुए, हम पृथ्वी पर चारों ओर शांतिपूर्ण साष्टांग प्रणाम करते हैं। फिर, हम इस प्रार्थना करते हैं: “हे मात! हम तुम्हारे चरणों में हैं और हमें तुम्हारी शरण चाहिए। हे माता! कृपा करके हमारे पापों को क्षमा करें और हमारे परिवार को सदैव आपकी कृपा से आशीर्वादित रखें।”
व्रती को निम्नलिखित आहार सामग्री से सेवन करना चाहिए: मूंग की दाल, चावल, जौ का आटा, अरवी, केला, आलू, कन्दा, और मूंग दाल का हलवा। इस व्रत में नमक का सेवन नहीं करना चाहिए। इस अन्नपूर्णा व्रत को सोलह वर्षों तक करने के बाद, हमें सत्रहवें वर्ष उद्यापन करना चाहिए, जिसमें पूरे समारोह को सजाकर ब्राह्मणों को अन्न और गौदान करना चाहिए।
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अन्नपूर्णा माता की जयंती कब मनाई जाती हैं ?
माता अन्नपूर्णा की जयंती को एक अद्वितीय और प्रभावशाली रूप में मनाना जाता है। इस शानदार उत्सव का आयोजन मार्गशीर्ष हिंदी मासिक की पूर्णिमा के दिन किया जाता है, जब सम्पूर्ण भक्ति और आदर के साथ माता अन्नपूर्णा की पूजा होती है। इस महत्वपूर्ण दिन को विशेषता से मनाने का प्रयास करते हुए, 2023 में यह शानदार उत्सव 26 दिसम्बर को आयोजित किया जाएगा। इस अवसर पर, दान की महत्वपूर्णता को सार्थकता के साथ समझाया जाएगा और माता अन्नपूर्णा के अनुग्रह को साकार करने का समर्थन किया जाएगा।
अन्नपूर्णा देवी पूजा का महत्व एवम उद्देश्य (Annapurna Jayanti Mahatva in Hindi)
अन्नपूर्णा देवी की पूजा में रसौई घर को अत्यंत शुद्ध रूप से संरक्षित रखी जाती है, जिससे सभी को एक अत्युत्तम सृष्टि का अहसास होता है। इस पूजा से यह संकेत मिलता है कि भोज्य पदार्थों के स्वर्गीय स्थानों को सुरक्षित रखना अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस कारण लोग एक उच्च स्तर के आदर्शों की ओर बढ़ते हैं, और यह साबित होता है कि अन्न का पूरा मूल्य समझा जाना चाहिए, उसे व्यर्थ नहीं फेकना चाहिए। इस अद्वितीय दिन के माध्यम से मानवता को अन्न के महत्वपूर्ण आधारों पर जागरूक किया जाता है, जिससे व्यक्ति में सदगुण संस्कृति और आदरभावना की ऊँचाइयों का सामर्थ्य बढ़ता है, और इसी कारण उसमें किसी भी प्रकार का अभिमान नहीं आता।
Annapurna Mata Story In Hindi
प्राचीन किस्सों के अनुसार, जब पृथ्वी पर पानी और खाने की चीजें कम होने लगीं, तो लोगों के बीच एक बड़ा हुआ। इस समय में सभी लोग भगवान ब्रह्मा और विष्णु की पूजा करके उनसे मदद मांगने लगे। स्थिति को देखकर, भगवान ब्रह्मा और विष्णु ने भगवान शिव को जगाया और सभी समस्याओं का समाधान बताया। शिव जी ने पृथ्वी की रक्षा के लिए खुद को संजीवनी रूप में बदला, और उसके साथ ही उन्होंने भूखे लोगों को भी आहार देने का आदान-प्रदान किया। इस घड़ी से हर साल अन्नपूर्णा जयंती का आयोजन होने लगा है, जिससे हमें आहार की महत्वपूर्णता के बारे में सोचने का मौका मिलता है।
प्रतीकात्मक संकेत:
एक प्रशिक्षणदाता होने के साथ-साथ, भगवान शिव ने अन्नपूर्णा देवी के रूप में भी खुद से भिक्षा मांगी, जिससे वह भूखे लोगों को आहार प्रदान करने की सिमुलेशन करते हैं। यह भगवान की उनकी करुणा को दिखाने वाला एक महत्वपूर्ण प्रतीक है, जो आहार की महत्वपूर्णता को हाथ में लेता है। अन्नपूर्णा जयंती इस प्रतीक की याद दिलाती है, जो कृतज्ञता और आहार के प्रति जिम्मेदारी की महत्वपूर्णता को बढ़ाता है।
सीता-हरण और अन्नपूर्णा की दयालुता:
अन्नपूर्णा जयंती से जुड़ी एक और कहानी है, जिसमें भगवान राम, जो देवी सीता की खोज में थे, अपने वानर सेना के साथ भटक रहे थे। इस मुश्किल समय में, अन्नपूर्णा देवी ने खुद लॉर्ड राम और उसके अनुयायियों को आहार प्रदान किया, जिससे उन्होंने उनके भोजन की देखभाल की और उनका साथ दिया।
काशी में अन्नपूर्णा की नजर:
कहानियों के अनुसार, जब काशी में भगवान शिव मुक्ति प्रदान कर रहे थे, तब माता पार्वती, अन्नपूर्णा के रूप में, जीवित जनता के लिए आहार की देखभाल कर रही थीं।
समकालीन महत्व:
अन्नपूर्णा जयंती आधुनिक समय में सांस्कृतिक और आध्यात्मिक उत्सव के रूप में महत्वपूर्ण है। इस उत्सव के माध्यम से हमें आहार की महत्वपूर्णता को महसूस करने का अवसर मिलता है और हमें इसके प्रति आदरपूर्वक संबंधित होने का प्रेरणा मिलता है। भगवान शिव और देवी अन्नपूर्णा के किस्से हमें आहार की महत्वपूर्णता पर विचार करने और इसे संरक्षित रखने के लिए एक नए दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
निष्कर्ष:
सारांश में, अन्नपूर्णा जयंती भूखे और परेशान लोगों के लिए आहार की महत्वपूर्णता और भगवान की कृपा की एक दुर्लभ तस्वीर है। भगवान शिव और देवी अन्नपूर्णा के किस्सों के माध्यम से, लोगों को यह याद दिलाया जाता है कि उन्हें आहार के प्रति कृतज्ञता और जिम्मेदारी रखने का कर्तव्य है। यह उत्तरदाता गाथा, जीवन के तात्कालिक पहलुओं के साथ मानवता के बीच एक गहरे जड़ से संबंधित है।
FAQs
- क्या है अन्नपूर्णा माता का महत्व?
- अन्नपूर्णा माता को भूखा नहीं सोने देने का सिद्धांत महत्वपूर्ण है, जिससे जीवन का संतुलन बना रहता है।
- अन्नपूर्णा माता कौन हैं और उनका पूजन क्यों किया जाता है?
- अन्नपूर्णा माता हिन्दू धर्म की देवी है, जो भोजन की देवी के रूप में पूजी जाती है, ताकि भक्तों को आहार की कमी न रहे।
- अन्नपूर्णा माता के कौन-कौन से रूप हैं?
- अन्नपूर्णा माता के प्रमुख रूपों में से कुछ हैं: स्वर्णकामा, भूखान्ना, आदित्यवर्णेश्वरी, चंद्रमौळी, ज्ञानविद्या, अचलेश्वरी, चारुरूपा, मुदान्या, भूमान्या, चंद्रपद्मा, हंसक्षीरा, दारिद्र्यनाशिनी, विश्वजननी, नित्यानन्दा।
- अन्नपूर्णा माता की कहानी में कौन-कौन से महत्वपूर्ण घटनाएं हैं?
- अन्नपूर्णा माता की कहानी में महत्वपूर्ण घटनाओं में से कुछ हैं: अन्नदान, भिक्षाटन, दान की महिमा, और उनका शिव से मिलन।
- अन्नपूर्णा माता के मंदिर कहाँ-कहाँ स्थित हैं?
- अन्नपूर्णा माता के मंदिर भारत के विभिन्न हिस्सों में स्थित हैं, जैसे कि काशी, वाराणसी, नासिक, अमृतसर, आदि।
- अन्नपूर्णा माता का पूजन कैसे किया जाता है?
- अन्नपूर्णा माता का पूजन विशेष रूप से अन्न और धान्य के रूप में किया जाता है, और उन्हें धन्यवाद दिया जाता है कि वे हमें आहार प्रदान करती हैं।
- अन्नपूर्णा माता के पूजन के लिए कौन-कौन से उपाय हैं?
- अन्नपूर्णा माता के पूजन के लिए उपयुक्त उपायों में से कुछ हैं: अन्नदान, व्रत रखना, आरती गाना, मंत्र जपना, और मंदिर यात्रा करना।
- अन्नपूर्णा माता के बारे में कुछ रोचक तथ्य बताएं।
- अन्नपूर्णा माता के बारे में कुछ रोचक तथ्य: उनकी वाहनी मूषक है, और वे शिव की पत्नी के रूप में पूजी जाती हैं।
- अन्नपूर्णा माता की पूजा कब-कब और कैसे की जाती है?
- अन्नपूर्णा माता की पूजा विशेष रूप से नवरात्रि के दौरान की जाती है, लेकिन कुछ भक्त उन्हें प्रतिदिन पूजते हैं। पूजा में अन्न और धान्य की अर्पण की जाती है।
- अन्नपूर्णा माता से संबंधित कुछ पौराणिक कथाएं कौन-कौन सी हैं?
- अन्नपूर्णा माता से संबंधित पौराणिक कथाएं में से कुछ हैं: अन्नदान कथा, विश्वामित्र और तृषंकु कथा, और महाकालेश्वर मंदिर के संस्थापक की कथा।
- अन्नपूर्णा माता के पूजन में कौन-कौन से आरती गाई जाती है?
- अन्नपूर्णा माता के पूजन में “अन्नपूर्णा स्तोत्र” और “अन्नपूर्णा आरती” विशेष रूप से गाई जाती हैं, जो उनकी महिमा को बयान करती हैं।
- अन्नपूर्णा माता के दर्शन के लिए कौन-कौन से तीर्थ स्थले हैं?
- अन्नपूर्णा माता के दर्शन के लिए काशी, वाराणसी, नासिक, अमृतसर, और बनारस में स्थित मंदिर प्रमुख तीर्थ स्थल हैं।
- अन्नपूर्णा माता के उपासना मंत्र क्या हैं?
- “ॐ ह्रीं अन्नपूर्णायै नमः” यह मंत्र अन्नपूर्णा माता के उपासना में प्रयुक्त होता है।
- अन्नपूर्णा माता का व्रत कैसे रखा जाता है?
- अन्नपूर्णा माता का व्रत भक्तों द्वारा अन्नदान और धान्य के साथ संबंधित कार्यों को एकाग्रता से करने का एक अवसर होता है।
- अन्नपूर्णा माता से जुड़ी कुछ लोकप्रिय कविताएं बताएं।
- “अन्नपूर्णा स्तुति” और “अन्नपूर्णा भवानि” जैसी कविताएं अन्नपूर्णा माता की महिमा को बयान करती हैं।
- अन्नपूर्णा माता के बारे में किस प्रकार के धार्मिक ग्रंथों में वर्णन है?
- अन्नपूर्णा माता के बारे में विविध पौराणिक ग्रंथों, जैसे कि शिव पुराण, देवी भागवत, और काशी खण्ड, में विस्तार से वर्णन है।
- अन्नपूर्णा माता के प्रति भक्ति का महत्व क्या है?
- अन्नपूर्णा माता के प्रति भक्ति से भक्त उनके आशीर्वाद से जीवन को समृद्धि, संतुलन, और शांति में बदल सकते हैं।